औरंगज़ेब: इतिहास का साया या राजनीति का नया मोहरा?

औरंगज़ेब: इतिहास का साया या राजनीति का नया मोहरा?
महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों एक नया मोड़ देखने को मिल रहा है। औरंगज़ेब, जो सदियों पहले का एक मुगल सम्राट था, अचानक से राजनीतिक बहसों के केंद्र में आ गया है। सवाल यह उठता है कि क्या यह इतिहास की पुनरावृत्ति है या फिर वर्तमान राजनीति का नया खेल?

महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में औरंगज़ेब की तस्वीरों को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। कुछ युवा उनकी तस्वीरें लेकर सड़कों पर निकलते हैं, जिससे तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है। राजनीतिक दल इस मुद्दे को भुनाने में लगे हैं, एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। लेकिन असली मुद्दा क्या है?

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करना कोई नई बात नहीं है। लेकिन जब इतिहास का उपयोग समाज को बांटने के लिए किया जाए, तो यह चिंताजनक हो जाता है। औरंगज़ेब को लेकर जो विवाद चल रहा है, वह वास्तव में वर्तमान की समस्याओं से ध्यान भटकाने का एक प्रयास है।

महाराष्ट्र, जो छत्रपति शिवाजी महाराज की भूमि है, वहां औरंगज़ेब का मुद्दा उठाना संवेदनशीलता को भड़काने जैसा है। लेकिन क्या इससे किसानों की समस्याएं हल होंगी? क्या बेरोजगारी कम होगी? या फिर यह सिर्फ वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा है?

राजनीतिक दलों को समझना होगा कि इतिहास से सीख लेकर भविष्य का निर्माण किया जाता है, न कि उसे हथियार बनाकर समाज में विभाजन किया जाए। औरंगज़ेब का नाम लेकर राजनीति करने से बेहतर होगा कि हम वर्तमान की चुनौतियों का सामना मिलकर करें।

तो सवाल यह है कि क्या हम इतिहास के साए से बाहर निकलकर एक समृद्ध और एकजुट महाराष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं? या फिर औरंगज़ेब जैसे मुद्दों में उलझकर अपनी राह भटकते रहेंगे?

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